|| श्रीकृष्णार्पणमस्तु || भागवत
|| श्रीकृष्णार्पणमस्तु || भागवत गीता महात्म्य - ९ से २३ "हम कौन है उस भगवद्माया/भगवद्गीता का महात्म्य लगानेवाले ? चिदानंदने अर्जुन से कहीं, वह परात्पर की वाणी ! उसकी महिमा हम क्या बताए? गीता मात्र पास होने से हमारी गती बदलती है, गीताका मात्र एक श्लोक, एक अध्याय, या जितन होसके उतन पढने से भी जीव की गती बदलकर वह सतपुरुषों के संग को पाता है `| मरते समय भी जिसे गीता के ज्ञान का स्मरण हो रहा हो, अन्य विषयों का नही, वह भी सतपुरुषों का संग पात है | तथा *जीवनभर नित्य गीताभ्यास कर उस प्रकारसे कर्म कर राजा जनकादि विदेही नुक्त हो गए | ******गीतार्थश्रवणासक्त मनुष्य को भी वैकुंठ/सतपुरुषो का संग यह गती मिलती है | *************अनेकविध कर्म करते हुए भी जो भी गीतार्थ का अनुसंधान रखेगा , वह जीवनमुक्त हो परनपद प्राप्त करेगा | =>यह महात्म्य का भी बहुत महत्व है | इस महात्म के बिना गीता पढी तो कुछ पढा नहीं | गीता पहली बार पढकर यह महात्म्य पढना | फिर पुनः गीता पढना आपको अधिक बोध होगा | मुख्यतः फलबंध और फलमुक्ति का | यह महात्म्य अधिक महान है क्यूं की 'गीता का प्रयोजन जो मुक्ती वो किसी सद्गुरू से गीता श्रवण करने में हीं है', यह स्पष्ट बताया है , यहीं जो प्रभु गीता में भी कई बार बता रहे है उदा. १.शिष्यस्तेहं शाधि मां त्वां प्रपन्नं २. ज्ञानी लोगोंको शरण जाकर उन्हे ज्ञान के विषय में प्रश्न पुंछने पर वे आत्मज्ञान शिष्य को देते है |" =>श्रीसूतजी ने भी कहाँ है की मनुष्य गीता को गीता के महात्म्य के साथ आत्मसात करेगा , वह जरुर ही मोक्षरुपी फल प्राप्त करेगा | इस प्रकार पुराणों में भगवान शंकर द्वारा माता पार्वती को बताया हुवा गीतामहात्म्य पुर्ण हुवा |