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जब पाक सेना ने किया था कत्लेआम,

by हिन्दू परिवार संघटन संस्था

जब पाक सेना ने किया था कत्लेआम, 30 लाख लोगों की गर्इ थी जान - 
फाइल फोटो- 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में वहां के नागरिकों को मारते पाकिस्तानी फौज के सैनिक।

1971 तक भारत के पूरब और पश्चिम दोनों में ही पाकिस्तान था। पूर्वी पाकिस्तान में बांग्ला बोलने वाले लोग थे जबकि पश्चिमी पाकिस्तान में उर्दू जबान बोली जाती थी। पूर्वी-पश्चिमी पाकिस्तान में दो हजार किलोमीटर का फासला था, लेकिन ये एक ही मुल्क के दो हिस्से थे। फौज, और सरकारी नौकरियों में पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों का दबदबा था। जिसके चलते पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने बगावत कर दी। इस बगावत को दबाने के लिए पाकिस्तान की सेना ने मोर्चा संभाला।

25 मार्च 1971 को पाकिस्तानी सेना ने अपने ही मुल्क के बंगाली भाषी लोगों पर जुल्म ढाहना शुरू किया। इस कार्रवाई को पाकिस्तानी सेना ने आपरेशन सर्च लाइट का नाम दिया। बांग्लादेश की सरकार के आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तानी सेना के दमन में मारे जाने वालों की तादाद 30 लाख थी। इतना ही नहीं फौज ने दो लाख महिलाओं से बलात्कार किया था। पाक की फौज ने लाखों बच्चों को भी मौत के घाट उतार दिया था। 1971 के युद्ध में करीब 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे, जबकि 9,851 घायल हो गए थे।

1971 में हुआ भारत-पाकिस्तान का युद्ध बांग्लादेश की रिहाई के लिए लड़ा गया था। सन् 1970 में पाकिस्तान में हुए चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान आवामी लीग ने 169 में से 167 सीटों पर जीत दर्ज की और शेख मुजीबुर्रहमान ने संसद में सरकार बनाने की पेशकश की। मगर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के जुल्फिकार अली भुट्टो ने इसका विरोध किया और हालात इतने गंभीर हो गए कि राष्ट्रपति को सेना बुलवानी पड़ी। फौज में शामिल अधिकतर लोग पश्चिमी पाक के थे। पूर्वी पाक की सेना को यहां हार का सामना करना पड़ा और शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया। बस यहीं से यद्ध की पृष्ठभूमि तैयार हुई।

27 मार्च 1971 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान की स्वतंत्रता का समर्थन किया। भारत की सीमा पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) के शरणार्थियों के लिए खोल दी गई। पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, मेघालय व त्रिपुरा राज्यों की सरकार ने इन शरणार्थियों के लिए शिविर बनाए। जल्द ही पूर्वी पाक के निष्कासित सैन्य अफसर और भारत के स्वयं सेवकों ने मिलकर मुक्ति वाहिनी का गठन किया, जिसने पाकिस्तानी सेना को काफी नुकसान पहुंचाया। भारत ने हथियारों के माध्यम से मुक्ति वाहिनी को खुलकर समर्थन देना शुरू कर दिया। हिंसा के चलते भारत में करीब एक करोड़ शरणार्थी जमा हो चुके थे। - 

भारतीय नौसेना के दस्ते ने कराची बंदरगाह पर आक्रमण किया व पाकिस्तानी नौसेना के कई युद्ध पोत कराची बंदरगाह में डुबो दिए गए। अपनी जान की परवाह किए बगैर कराची बंदरगाह के बिलकुल पास जाकर इन्होंने अपने प्रक्षेपास्त्रों से कराची बंदरगाह पर हमला कर दिया। इस हमले के बाद भारतीय नौसेना का पश्चिमी मोर्चे पर वर्चस्व हो गया। अब पाकिस्तानी नौसेना की कमर टूट चुकी थी।


फाइल फोटो-आत्मसमर्पण करते पाकिस्तानी सैनिक।

अमेरिका और चीन की पूरी हमदर्दी पाकिस्तान के साथ थी। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति निक्सन ने पाकिस्तान का पक्ष लेते हुए अमेरिकी नौसेना का 7वां बेड़ा भारत की ओर रवाना कर दिया था। अमेरिकी बेड़े के आने पर युद्ध की दिशा बदल सकती थी, पर अमेरिकी बेड़े के पहुंचने के पहले ही भारतीय सेनाओं ने युद्ध को ही निर्णायक मोड़ दे दिया। पाकिस्तान की पनडुब्बी 'गाजी' को विशाखापट्टनम नौसैनिक अड्डे के पास डुबो दिया गया।

भारतीय नौसेना का पराक्रम चरम पर था। इतिहास में पहली बार किसी नौसेना ने दुश्मन की नौसेना को एक सप्ताह के अंदर पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर दिया था। 15 दिसंबर को पाकिस्तानी सेनापति जनरल एके नियाजी ने युद्धविराम की प्रार्थना की। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी फौजों ने आत्मसमर्पण कर दिया।


16 दिसंबर की सुबह लेफ्टिनेंट जनरल जैकब को मानेकशॉ का संदेश मिला कि आत्मसमर्पण की तैयारी के लिए तुरंत ढाका पहुंचें। जैकब की हालत बिगड़ रही थी। नियाज़ी के पास ढाका में 26400 सैनिक थे, जबकि भारत के पास सिर्फ़ 3000 सैनिक और वे भी ढाका से 30 किलोमीटर दूर। भारतीय सेना ने युद्घ पर पूरी तरह से अपनी पकड़ बना ली। लेफ्टिनेंट जनरल जगत सिंह अरोड़ा अपने दलबल समेत एक दो घंटे में ढाका लैंड करने वाले थे और युद्ध विराम भी जल्द ख़त्म होने वाला था। जैकब के हाथ में कुछ भी नहीं था। जैकब जब नियाज़ी के कमरे में घुसे तो वहां सन्नाटा छाया हुआ था।

शाम के साढ़े चार बजे लेफ्टिनेंट जनरल अरोड़ा हेलिकॉप्टर से ढाका हवाई अड्डे पर उतरे। आत्म-समर्पण का दस्तावेज़ एक मेज़ पर रखा हुआ था। अरोडा़ और नियाज़ी मेज़ के सामने बैठे और दोनों ने आत्म-समर्पण के दस्तवेज़ पर हस्ताक्षर किए। नियाज़ी ने अपने बिल्ले उतारे और अपना रिवॉल्वर जनरल अरोड़ा के हवाले कर दिया। नियाज़ी की आंखों में एक बार फिर आंसू आ गए। -

जब पाक सेना ने किया था कत्लेआम, 30 लाख लोगों की गर्इ थी जान - फाइल फोटो- 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में वहां के नागरिकों को मारते पाकिस्तानी फौज के सैनिक। 1971 तक भारत के पूरब और पश्चिम दोनों में ही पाकिस्तान था। पूर्वी पाकिस्तान में बांग्ला बोलने वाले लोग थे जबकि पश्चिमी पाकिस्तान में उर्दू जबान बोली जाती थी। पूर्वी-पश्चिमी पाकिस्तान में दो हजार किलोमीटर का फासला था, लेकिन ये एक ही मुल्क के दो हिस्से थे। फौज, और सरकारी नौकरियों में पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों का दबदबा था। जिसके चलते पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने बगावत कर दी। इस बगावत को दबाने के लिए पाकिस्तान की सेना ने मोर्चा संभाला। 25 मार्च 1971 को पाकिस्तानी सेना ने अपने ही मुल्क के बंगाली भाषी लोगों पर जुल्म ढाहना शुरू किया। इस कार्रवाई को पाकिस्तानी सेना ने आपरेशन सर्च लाइट का नाम दिया। बांग्लादेश की सरकार के आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तानी सेना के दमन में मारे जाने वालों की तादाद 30 लाख थी। इतना ही नहीं फौज ने दो लाख महिलाओं से बलात्कार किया था। पाक की फौज ने लाखों बच्चों को भी मौत के घाट उतार दिया था। 1971 के युद्ध में करीब 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे, जबकि 9,851 घायल हो गए थे। 1971 में हुआ भारत-पाकिस्तान का युद्ध बांग्लादेश की रिहाई के लिए लड़ा गया था। सन् 1970 में पाकिस्तान में हुए चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान आवामी लीग ने 169 में से 167 सीटों पर जीत दर्ज की और शेख मुजीबुर्रहमान ने संसद में सरकार बनाने की पेशकश की। मगर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के जुल्फिकार अली भुट्टो ने इसका विरोध किया और हालात इतने गंभीर हो गए कि राष्ट्रपति को सेना बुलवानी पड़ी। फौज में शामिल अधिकतर लोग पश्चिमी पाक के थे। पूर्वी पाक की सेना को यहां हार का सामना करना पड़ा और शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया। बस यहीं से यद्ध की पृष्ठभूमि तैयार हुई। 27 मार्च 1971 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान की स्वतंत्रता का समर्थन किया। भारत की सीमा पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) के शरणार्थियों के लिए खोल दी गई। पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, मेघालय व त्रिपुरा राज्यों की सरकार ने इन शरणार्थियों के लिए शिविर बनाए। जल्द ही पूर्वी पाक के निष्कासित सैन्य अफसर और भारत के स्वयं सेवकों ने मिलकर मुक्ति वाहिनी का गठन किया, जिसने पाकिस्तानी सेना को काफी नुकसान पहुंचाया। भारत ने हथियारों के माध्यम से मुक्ति वाहिनी को खुलकर समर्थन देना शुरू कर दिया। हिंसा के चलते भारत में करीब एक करोड़ शरणार्थी जमा हो चुके थे। - भारतीय नौसेना के दस्ते ने कराची बंदरगाह पर आक्रमण किया व पाकिस्तानी नौसेना के कई युद्ध पोत कराची बंदरगाह में डुबो दिए गए। अपनी जान की परवाह किए बगैर कराची बंदरगाह के बिलकुल पास जाकर इन्होंने अपने प्रक्षेपास्त्रों से कराची बंदरगाह पर हमला कर दिया। इस हमले के बाद भारतीय नौसेना का पश्चिमी मोर्चे पर वर्चस्व हो गया। अब पाकिस्तानी नौसेना की कमर टूट चुकी थी। फाइल फोटो-आत्मसमर्पण करते पाकिस्तानी सैनिक। अमेरिका और चीन की पूरी हमदर्दी पाकिस्तान के साथ थी। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति निक्सन ने पाकिस्तान का पक्ष लेते हुए अमेरिकी नौसेना का 7वां बेड़ा भारत की ओर रवाना कर दिया था। अमेरिकी बेड़े के आने पर युद्ध की दिशा बदल सकती थी, पर अमेरिकी बेड़े के पहुंचने के पहले ही भारतीय सेनाओं ने युद्ध को ही निर्णायक मोड़ दे दिया। पाकिस्तान की पनडुब्बी 'गाजी' को विशाखापट्टनम नौसैनिक अड्डे के पास डुबो दिया गया। भारतीय नौसेना का पराक्रम चरम पर था। इतिहास में पहली बार किसी नौसेना ने दुश्मन की नौसेना को एक सप्ताह के अंदर पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर दिया था। 15 दिसंबर को पाकिस्तानी सेनापति जनरल एके नियाजी ने युद्धविराम की प्रार्थना की। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी फौजों ने आत्मसमर्पण कर दिया। 16 दिसंबर की सुबह लेफ्टिनेंट जनरल जैकब को मानेकशॉ का संदेश मिला कि आत्मसमर्पण की तैयारी के लिए तुरंत ढाका पहुंचें। जैकब की हालत बिगड़ रही थी। नियाज़ी के पास ढाका में 26400 सैनिक थे, जबकि भारत के पास सिर्फ़ 3000 सैनिक और वे भी ढाका से 30 किलोमीटर दूर। भारतीय सेना ने युद्घ पर पूरी तरह से अपनी पकड़ बना ली। लेफ्टिनेंट जनरल जगत सिंह अरोड़ा अपने दलबल समेत एक दो घंटे में ढाका लैंड करने वाले थे और युद्ध विराम भी जल्द ख़त्म होने वाला था। जैकब के हाथ में कुछ भी नहीं था। जैकब जब नियाज़ी के कमरे में घुसे तो वहां सन्नाटा छाया हुआ था। शाम के साढ़े चार बजे लेफ्टिनेंट जनरल अरोड़ा हेलिकॉप्टर से ढाका हवाई अड्डे पर उतरे। आत्म-समर्पण का दस्तावेज़ एक मेज़ पर रखा हुआ था। अरोडा़ और नियाज़ी मेज़ के सामने बैठे और दोनों ने आत्म-समर्पण के दस्तवेज़ पर हस्ताक्षर किए। नियाज़ी ने अपने बिल्ले उतारे और अपना रिवॉल्वर जनरल अरोड़ा के हवाले कर दिया। नियाज़ी की आंखों में एक बार फिर आंसू आ गए। -

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